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खून के रिशतें को हम भूल रहें है




खून के रिशतें को हम भूल रहें है

हे प्रभु जी ऐसी दुनिया क्यों बनाई तुमनें
दो दिन की जिंदगी में 
हैरान हो हर शख्स
आज तक भाईचारे से रहते थे जो
उसे ही अपने लिए खतरा समझ रहें है
खून के रिश्तें को हम भूल रहें है।
यहां नफरतें रंजिशे साजिशें इतनी है कि
रोंगटें खड़ी हो जाती है हालात को देखकर
वक्त बदल गया है या रिश्तें
हे प्रभु जी ऐसी दुनिया क्यों बनाई तुमनें
नफरत और दिखावें की दीवार खड़ी हो गई है
खून के रिश्तें को हम भूल रहें है।
जिन्हें माना हमनें अपने डूबती का सहारा
उन्होनें ही कर रहा है हमसे किनारा
हे प्रभु जी इतनी ही कर तू रजा
बस इतना ही बता दें कि
किस बात की दे रहा है सजा।
कितनी अजीब है ये जिंदगी की कहानी दोस्तों
दर्द ए दिल की दास्तान किसी से क्या बयां करें
आज रिश्तें बिखर सी गई है
इस आपा धापी की दौड़ में।
आज तक भाईचारे से रहते थे जो
उसे ही अपने के लिए खतरा समझ रहें है
खून के रिश्तें को हम भूल रहें है।

नूतन लाल साहू



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7 Comments

Madhumita

30-May-2023 10:59 PM

Nice 👍🏼

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बहुत सुंदर

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सुंदर अभिव्यक्ति।

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